पिता की कलम से - "निःशब्द"
पिता की कलम से - "निःशब्द"
बच्चों की हसरतें रहें जिन्दा,
मैं अपनी ख्वाहिशें वार देता हूँ,
सिराहने बैठ बच्चों के,
ज़िन्दगी की हलचल का अनुमान लेता हूँ,
मैं पिता हूँ, निःशब्द प्यार देता हूँ,
दिखता हूँ कठोर, रहता हूँ मौन,
बिन कहे ही उनकी,
जरूरतें भाँप लेता हूँ,
मैं पिता हूँ, निःशब्द प्यार देता हूँ,
उलझन कोई आये, मन घबराये,
उनकी उलझनों को मैं,
उधार लेता हूँ,
मैं पिता हूँ, निःशब्द प्यार देता हूँ,
माँ धरा, मैं आसमाँ,
धरा से आसमाँ के सफ़र में,
सेतू बन आधार देता हूँ,
मैं पिता हूँ, निःशब्द प्यार देता हूँ,
बच्चें जब लड़खड़ाते हैं,
जीवन डगर में डगमगाते हैं,
किनारे बैठ,
लहरों में उतरने से कतरातें हैं,
मैं उनकी ऊँगली थाम,
साहिल पे पहुँचाकर ही दम लेता हूँ,
मैं पिता हूँ, निःशब्द प्यार देता हूँ,
दुनिया की भीड़ में, कहीं खो न जायें,
चौराहें पे पहुँच, गुमराह हो न जायें,
चौतरफ़ा हवाओं का अनुमान ले,
तूफानों की आहट पहचान लेता हूँ,
मैं पिता हूँ, निःशब्द प्यार देता हूँ,
मज़बूत काँधों पर जीवन भर,
बच्चों की हसरतों को ढोता रहा,
हसरतें कैसे हों पूरी,
मन में यही सोचता रहा,
अब अपने झुके काँधों का,
जायज़ा बार - बार लेता हूँ,
मैं पिता हूँ "शकुन",
निःशब्द प्यार देता हूँ ||
