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पिता की छाँव

पिता की छाँव

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माँ घर की तुलसी,लक्ष्मी हैं,

तो पिता घर का मजबूत स्तम्भ है,


अंगुली पकड़ बेशक चलना सिखाती हैं माँ,

जीवन की तपती धूप में साया पिता होता हैं।


जीवन की सच्चाइयों से रू-ब-रू करवाता है,

बन वट-वृक्ष अपनी छाँव में हमें सुरक्षित रखता है।


कोई कमी नहीं रह जाये बच्चों के जीवन में,

भूख प्यास भूला वो दिन रात एक करता है।


सादगीपूर्ण जीवन की चाह में जिदंगी भर,

अपनी ख़्वाहिशों कोई मन में दबाकर रखता है।


जब भी बच्चों पर आती हैं विपदा और मुश्किलें,

बरगद बन बच्चों का अपनी छाँव में पनाह देता है।


झुक जाते है कन्धे जिम्मेदारियों को संभालते हुए,

हंसते हंसते भूल जाता है दर्द और मुस्कराता रहता है।


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