पिता का संघर्ष
पिता का संघर्ष
बच्चे के जन्म का वक्त मुकर्रर हुआ।
लो पिता का संघर्ष शुरू हुआ।!!1!!
उँगली पकड़ के चलना सिखाना है।
जीवन की हर परिस्थिति से
लड़ना सीखना है।।
अपने ग़मों को हर हाल में
छिपाना है।
बच्चे को बड़े सपने देखना
सीखना है।।
है, मंजिलें दूर सही मगर,
कश्ती बन हर समंदर पार कराना है।
सिखाने को हर गुण बच्चे का
प्रथम गुरु हुआ।
लो पिता का संघर्ष शुरू हुआ।!!2!!
उसका मुकाम बेशक़ आला है।
जन्म से पहले ही उसके सपने
को दिमाग़ में पाला है।।
खुद भूखा रहकर भी
एक-एक निवाला मुँह में डाला है।
फटी रही बनियान, घिसे रहे चप्पल
बच्चे की ख़ुशी के लिए,
अपनी ख़ुशी से महरूम हुआ।
लो पिता का संघर्ष शुरू हुआ। !!3!!
एक ही जोड़ी कपड़े में
पूरी ज़िंदगी निकल दी।
बच्चे के क़दमों पे ज़माने की
तमाम खुशियाँ डाल दी।।
कभी बच्चे के लिए माँ और पिता
दोनों बन के जीया है।
माँ की कमी कभी महसूस होने
न दिया है।।
माँ की ममता और पिता के प्यार में
कभी फर्क ना हुआ।
लो पिता का संघर्ष शुरू हुआ। !!4!!
हाथ पीले करते ही रुसवा
किया है।
दर-दर ठोकरें खाने को
छोड़ दिया है।।
सारी मेहनत और परिश्रम का
बेड़ा गर्क हुआ।
लो पिता का असल संघर्ष अब
शुरू हुआ। !!5!!