किताबों के पन्ने पलटते-पलटते
किताबों के पन्ने पलटते-पलटते
ठोकरें खाई ख़ूब राह चलते-चलते।
नाकामियां भी आई ख़ूब राह बदलते-बदलते।।
ज़िन्दगी सवंर गई मग़र,
यूं किताबों के पन्ने पलटते-पलटते।।
नाकामियां, उदासियां आई यूं उछलते-उछलते।
तजुर्बा हो गया मग़र गिरके संभलते-संभलते।।
अकेलापन भी बाँट लिया मैंने,
किताबों से दोस्ती करते-करते।।
सफलता की उड़ान भरते-भरते।
दिन-रात सिर्फ किताबों पे मरते-मरते।।
ज़िन्दगी क्या है क़रीब से जान लिया,
यूं हर पल संघर्ष करते-करते।।