पिता का पाँव
पिता का पाँव
मेरे विचार की उपज को
शीतलता देता मेरा पिता
याद अक्षरश: आ रहा
महाभारत में पढी गीता
क्या लेकर आया मैं
क्या लेकर जाउंगा
हो सके तो उस
बरगद की तरह
थोड़ी छांव देकर जाउंगा
बरगद की छाँव धूप में तपने वाला ही जाने
पर उस छांव की कीमत A C वाला क्या जाने
सपनो से सुंदर सबसे प्यारा है मेरा ये गांव
यहाँ पर मिलती है हरपल ही बरगद की छाँव
सुबह होते ही दिख जाते हैं मात पिता के पांव
कोई अपना गांव ना छोड़ें
अपने जीवन को ना तोड़े