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Sheetal Raghav

Abstract Tragedy

3.3  

Sheetal Raghav

Abstract Tragedy

पिकनिक नहीं पलायन है!

पिकनिक नहीं पलायन है!

1 min
503



यह पिकनिक नहीं है,

पलायन है,


जाना पड़ रहा है,

शहर और अपना घर छोड़कर,

हर तरफ,

अब बस यही आलम है,

यह पिकनिक नहीं पलायन है,


रो रही है,

निशब्द जिंदगी,

घातक बन रही,

शहरों की आबोहवा,

हर तरफ अब यही खूनी,

मंजर है,


रो रही हर तरफ,

ज़िन्दगी,

छाया हर तरफ,

मातम का आलम,

यह पिकनिक नहीं पलायन है,


छूरा नहीं हाथों में,

परंतु वक्त के हाथों में खंजर है,

हर तरफ,अब,

यही चर्चा कायम है,

यह पिकनिक नहीं पलायन है,


जब ना रहा गया,

खामोश मुझसे,

पूछ ही लिया,

मैंने आगे बढ़ के,

क्या इस समय यह पलायन संभव है,


बोला नहीं रुक पा रहा है,

मन यहां,

हर तरफ रोती बिलखती,

जिंदगीयां और अंधजलि,

लाशों का मंजर है,


नहीं,आसान पलायन पर,

अपने घर,

अपनों के पास,

लौट जाना ही हमारे पास,

एकमात्र विकल्प है,


बचकर निकल पाने की,

अब जिद दिल में कायम है,

यही इस क्षण जरुरी है,

हर ओर चिताओ का जलता हवन है,

रो रहा है मन,

और शब्द मौन है,


जरुरी अभी,

यही पलायन है, यही पलायन है।


#Prompt 20


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