।। पिघलती रात ।।
।। पिघलती रात ।।
मोम के मानिंद पिघलती रात है,
अपने जज्बातों को और हवा मत देना,
मर्ज बढ़ गया है बीमार का हद से ज्यादा,
दुआ की जरूरत है अब और दवा मत देना।।
तन्हाइयां ही अब जीने का सबब हैं,
फिर से सब तुम महफिलें क्यों सजाते हो,
अपने नाजो नखरे हमने सब दफन कर डाले,
तुम नहीं क्यों अपनी शोखियों से बाज़ आते हो ।।
ये जो सलवटें हैं न इस मुई चादर पर,
तुम्हारी उम्र और मेरे इंतज़ार की कहानी है,
कभी हो फुरसत तो मिलना आके मेरे ख्वाबों में,
अपनी तो बस उधर न जाने कितनी कटी जवानी है ।।
क्या खूब ही तुम कहा करती थीं,
हर तलबगार को नहीं हासिल है सकीना,
उम्र गुजरी हैं ये कहते कि तुम जिंदगी हो मेरी,
ख़ुदा जाने कब आएगा हमें इस जिंदगी को जीना ।।

