फूलों सा बचपन
फूलों सा बचपन
कितना मधुर है ये फूलों से बचपन
जिसकी महक से सुवासित है उपवन।
जरा सुनो तो ओ माली भैय्या,
इस बगिया को तुम यूँ संभाले ही रखना।
इन कच्ची कलियों को जरा तुम तो देखो
जारी रहे इनका चहकना मटकना।
ये खुलकर के हंसना ये यूं खिलखिलाना
कैसा छलावा कैसा दिखावा ?
सबसे परे हटकर है बचपन।
कभी माँ के आँचल में जाके छुप जाते।
कभी छुप- छुपकर के माँ को सताते
कभी पकड़कर के पापा की उंगली,
जग ये सारा घूमना चाहते।
करो जतन ऐसा कि फूलों सा निखरे
ये प्यारा सा बचपन ये दुलारा सा बचपन।
कभी ये मासूम लड़ते झगड़ते
पर अगले ही पल सारे झगड़े सुलझते।
कभी रो रो के माटी में लोटे
कभी ये जिद में तोड़ें व फोड़ें।
कितने सुहाने हैं जीवन के ये क्षण
ना कोई चिंता है ना कोई गम
बाल्य मन है मानो उजले से दर्पण
कितना मधुर है ये फूलों से बचपन।
गर रोपित हो जाएं सुसंस्कार इनमें
तो जग ही बन जाए एक प्यारा सा मधुवन
कितना मधुर है ये फूलों से बचपन।