बोली पिचकारी करूँ फागुन की तैयारी।
फूलों की फुलवारी बीच रंगों की तैयारी।
नीर कहे करो बदलाव से तैयारी।
घोलो मुझमें रंग जिनकी वसंत की तैयारी।
चंपा चमेली गुलाब केसर टेसू की तैयारी।
गाजर चुकंदर पालक भी कहाँ पीछे रहने वाली।
रंग-बिरंगे रंग बने हैं, हल्दी ने कई जख्म भरे हैं।
होली में पिचकारी भर-भर, चितकबरे-से चेहरे बने हैं।
पानी फिर भी कहता है, खेलो फूलों की होली।
मुझसे खेलो, मुझसे नहाओ पानी का संहार है।
एक दिन के खेल में कई महीनो का विचार है।
पानी की किल्लत रोज का ही त्रास है ।
एक दिन हँसकर फ़िर रोने की तैयारी है।
जीवन में संध्या के आने की तैयारी है।
आज हँसो कल हँसो यूँ ही दिन-दिन हँसते रहो।
सोचकर समझकर पानी को सहेज लो।
हर दिन फिर होली , फूलों की होली, खुशियों की होली है।
हँसती-खिलखिलाती जिंदगी की यही तो खास होली है।