STORYMIRROR

Sachin Gupta

Inspirational

4  

Sachin Gupta

Inspirational

पहरेदार

पहरेदार

1 min
392

चार फिट की चार दीवार

खड़ी है चारो ओर।

बीच में एक पहरेदार खड़ा है

तानकर शस्त्र अपना ,

दे रहा है आवाज।

रूक जाओ तुम वहीं,

यहॉं एक पहरेदार खड़ा है।


घूर रहा है बाहर ,चारो ओर

लग रहा खूंखार नजरों से

होठों से है खामोश ,

कानों से भी देख रहा है

तन से अकड़ा हुआ

कैसा ये चट्टान खड़ा है ।

फट रहा है बादल ,

गरज रही है बिजली ,

तप रहा है सूरज

भीग रहा है सावन

जम रही है चॉदनी

पुस माघ की शीतल ओस

भीगों रही धरती का तन

फिर क्यों यह एैसे

तैनात खड़ा है,

तैनात खड़ा है

शायद मौत भी इससे दूर खड़ी है

देखो कैसा यह पहरेदार खड़ा है ।


ईद ,दीवाली , होली , दशहरा

नहीं है कोई इनसे नाता शायद

सबको कर दिल से दूर ,

कैसे यह तैनात खड़ा है

अरमानों को दबा दिल में,

मन से बैखोफ

देखो कैसा यह पहरेदार खड़ा है

हॉ, यह पहरेदार खड़ा है!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational