पहली मोहब्बत
पहली मोहब्बत
पहली मोहब्बत का अफसाना रहा
उस की गली में आना जाना रहा
झूठा ही मुस्कुराती मुझे देखकर
ये रिश्ता क्यों मेरा बेगाना रहा
तू रिश्ता बनाती रही रेत पर
मै तेरा नाम पत्थर पे बनाता रहा
तेरे मुस्कुराने से सब को सक होता रहा
तुझ पर फर्क नहीं पड़ा जरा भी
मैं यूँ ही तेरे नाम से बदनाम होता रहा
गम के सागर में डूबता दिन रात
कोई हाथ पकड़ने वाला ना रहा।