पहली बरसात
पहली बरसात
प्रथम बूँद वर्षा की जब
अंगों पर साकार हुई।
जैसे चुम्बन लिए प्रेयसी,
अधरों पर असवार हुई।
छन छन करती वर्षा बूँदें
जलबिंदु की मालाएँ।
भरतनाट्यम करती जैसे,
छोटी छोटी बालाएँ।
घनन घनन करते है बादल
ज्यों जीवन का शोर सखे।
टप टप करती बूंदें नाचें
ज्यों जंगल में मोर सखे।
आज प्रथम बारिश में भीगे,
सुख का वो आधार सखे।
जलती सी धरती पर जैसे,
शीतल जल की धार सखे।
छपक छपक बच्चे जब नाचें,
सड़कों पे चौबारों पर।
वर्षा की धुँधयाली छाई,
शहर गाँव गलियारों पर।
सूखे ताल तलैया देखो,
भरे हुए हैं पानी से।
रीते रीते से तन मन में,
आये जोश जवानी से।
ठंडा सा अहसास दिलाती
देखो बारिश मुस्काई।
चाँद टहलता बादल ऊपर
तारों में मस्ती छाई।
कोयल बोली कुहुक कुहुक कर।
दादुर ने राग अलापा।
चिड़ियों की चीं चीं चूँ चूँ से
गूँजा सुनसान इलाका।
सूखे ठूंठों पर अब देखो,
नई कोपलें इतराईं।
बूढ़े से नीरस जीवन में,
आशा कलियाँ मुस्काईं।
हँसते हुए पेड़ पौधे हैं,
जैसे बच्चे मुस्काते।
बारिश की नन्ही बूँदों में,
हिलते डुलते इतराते।
अंदर के बचपन ने देखो,
ली फिर से अँगड़ाई है।
बारिश की बूँदों से देखो,
मैंने आँख लड़ाई है।
बच्चा बन पानी में उछला,
उमर छोड़ दी गलियों में।
बच्चों जैसा सा मैं कूदा,
कीचड़ वाली नलियों में।