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Kusum Lakhera

Action Inspirational

4  

Kusum Lakhera

Action Inspirational

फ्लैट संस्कृति

फ्लैट संस्कृति

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279


सुनो वह मिट्टी की महक से सुवासित

घर कहाँ हैं ?

सुनो वह घास फूस बाँस की झोंपड़ी 

अब कहाँ हैं ?

अब गिने चुने ही ऐसे घर रह गए हैं ...

बढ़ती जनसंख्या के राहु ने इन घरों को 

कर दिया ख़त्म ...

मानो बढ़ती जनसंख्या ने प्रकृति को 

कर दिया भस्म !

लहराते पेड़ पौधे हो रहे हैं कितने कम !

गाँव जो मनाते थे खुशियाँ !

और गाते थे गीत !!

आज वहाँ सुनने को कहाँ मिलता है ?

चिड़ियों का संगीत ...

सुना है गाँव अब सब धीरे धीरे कस्बों में 

बदल रहे हैं !

परिवर्तन की बयार से गाँव भी शहरों में 

ढल रहे हैं !

बढ़ते औधौगीकरण के कारण अब गाँव 

भी कस्बों से ढल रहे हैं !

ईंट पत्थर गारा सीमेंट से बस बड़ी बड़ी 

अट्टालिकाएं ही नज़र आ रही हैं 

ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में विकास 

की लहर ये बता रही है कि 

विज्ञान के आधुनिक उपकरणों को हमने 

अपना लिया है 

और प्रकृति प्रदत्त चीजों को भुला लिया है । 

फ्लैट संस्कृति के आगमन से ग्रामीण संस्कृति 

से मानो दामन छुड़ा लिया है 

अब मकान दुकान खंडहर खोली फ्लैट मिलते हैं 

पर अब घर नहीं मिलते ..

अब सुख सुविधाओं से पूरित संसाधन मिलते हैं 

पर अब लहराते पेड़ पौधे ...

खुला आँगन खुले मन खुली छत कहाँ मिलती है

शायद भूमंडलीकरण के इस दौर में घर और प्रकृति 

कहीं गुम हो रहे हैं 



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