पहला ख़त
पहला ख़त
पहला ख़त
और उसमें लिपटा
वो पीला गुलाब
याद तो है ना..?
साहस कहाँ था उस वक़्त
कि हाथों में थमा दूँ,
चुपके से रखा था
तुम्हारे बैग में,
जिसे पाकर..
मेरे अक्षरों पे हाथ फेरकर
थोड़ी तो तुम भी मुसकाई थी,
फिर उस बात को..
मन के किसी कोने में समेट कर,
हो गई थी तुम व्यस्त
अपनी पढ़ाई में..
पुरज़ोर कोशिशें तुम करती रही
गालों के गहरे भाव को
छुपाने के लिए,
मैं भी पढ़ने में व्यस्त हुआ,
'मुखाकृति' तुम्हारी..!