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Mukesh Bissa

Inspirational

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Mukesh Bissa

Inspirational

फिर वोही रात

फिर वोही रात

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रोज रात में

सोचता हूं मैं भी

खुद से ही कर लेता

हूँ दो चार बातें

कुछ मुलाकातें

जो किसी से

न कह सका

वो अपने से ही

बतिया लेता हूं


दिन भर की 

रेलमपेल में अगर

हँस न पाया तो

अकेला ही 

मुस्कुरा देता हूं

रह गई कितनी बातें

कहने को

कुछ दिल से 

निकाल लेता हूं


घर कर लेता कुछ

जो कोई सुनता नहीं

उसे याद कर लेता हूं

अगर मिलते ग़म तो

बस चुपचाप से

पी लेता हूँ

फिर इसके

बस गुनगुना लेता हूं

अपने मे खो 

ही जाता हूँ



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