फिर से आँसमा को छूँ ले
फिर से आँसमा को छूँ ले
नव युग का संचार अनूठा,
विरह अतीत को हम भूले।
छँट गए घोर तिमिर की रजनी,
बीती रात कमल दल फूले।
थी अवसादों के घेरे में,
थी दुनिया के फेरे में।
थे मतलब के लोग जहाँ,
उलझी थी अंधेरे में।
झूली अब चेतना के झूले।
बीती रात कमल दल फूले।
सजा लूँ फिर से स्वप्न नया,
गा लूँ गीत फिर से नया।
बुन लूँ उमंगों की चूनर,
लगा लूँ माथे से धरा।
फिर से आसमाँ को छू ले
बीती रात कमल दल फूले।
