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अच्युतं केशवं

Tragedy

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अच्युतं केशवं

Tragedy

फिर भी रहे पराये हम ही

फिर भी रहे पराये हम ही

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दूजे का क्या है टूट गया ,

अपना कौन हुआ अपना है ?


समय दिखाता रहा अँगूठे

रिश्ते झूठे नाते झूठे ,

फिर उन्हें निभाते रहना ,

अनिकेतन जीवन अपना है

दूजे का क्या है टूट गया

अपना कौन हुआ अपना है?


तज उपहास उपेक्षा दूजी

मेरे पास रही क्या पूँजी ,

सपने का क्या है टूट गया

सपना तो फिर भी सपना है,

दूजे का क्या है टूट गया

अपना कौन हुआ अपना है ?


सोम-सुधा जगभर में बाँटी

धरती की जंजीरें काटी

फिर भी रहे पराये हम ही ,

कँपना कभी कभी तपना है,

दूजे का क्या है टूट गया

अपना कौन हुआ अपना है ?


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