फिर भी जीना
फिर भी जीना
दिल का एक ही अरमान रूठ कर न चले जाना था
हमारे शामिल होने के पहले कारवाँ न छूट जाना था।
बैठे रहे मासूम हम, जहाँ बिठाए गए इस पत्थर पर
राह निहारते इस तरह वक्त यूँ ही न गुज़र जाना था।
दुश्मनों की न कमी थी, दोस्तों को बेवजह न छोड़ना था
आँखों से सपने छीन के दूर तक यूँ न फेंक जाना था।
आखिर समंदर तैर कर किनारे पहुंचना सीखा हमने
बेवफा से हाथ मिला के वो बेरहम न बिछड़ जाना था।