फिर भी जीना

फिर भी जीना

1 min
377


दिल का एक ही अरमान रूठ कर न चले जाना था

हमारे शामिल होने के पहले कारवाँ न छूट जाना था।


बैठे रहे मासूम हम, जहाँ बिठाए गए इस पत्थर पर

राह निहारते इस तरह वक्त यूँ ही न गुज़र जाना था।


दुश्मनों की न कमी थी, दोस्तों को बेवजह न छोड़ना था

आँखों से सपने छीन के दूर तक यूँ न फेंक जाना था।


आखिर समंदर तैर कर किनारे पहुंचना सीखा हमने

बेवफा से हाथ मिला के वो बेरहम न बिछड़ जाना था।


Rate this content
Log in

More hindi poem from Nagamani Malireddy

Similar hindi poem from Romance