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Babu Dhakar

Abstract Inspirational Others

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Babu Dhakar

Abstract Inspirational Others

फिलहाल के हाल

फिलहाल के हाल

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कभी खुशी कभी ग़म के शब्दों से हमारा नाता है

तथाकथित सभ्य शब्दों से शुरू होती हमारी आशा है

आप और हम बैठे जब पेड़ की छांव घनी में

हम दोनों को खबर मिली कि यह भारतीय संस्कृति है। 

जब बातें होती रहीं बाहर की और हम खामोश रहे

हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई कह रहे पर भारतीय नहीं

बैठक डाल चौपाल पर करी बस एक दूसरे की बुराई

सब चौपट करने पर तुले और करते एक दूसरे की मान हानि।


झूठे पत्रकारों और व्यवसायियों का काम शुरू

कौन कितना पानी में भीगे वो ही तय कर रहे गुरु

जब समझ में आये तब तक काम हो चुका होता है

समझदारी भी देखो खिड़की से झांकती रह गई है ।

समझे सवालों को पहले कि बाद में बवाल ना हो जाए

रुठी है रातें और दिन में भी नयी और उदासी जारी होती है

सब होता है और हमें हमारे होने का अफसोस होता है

मिलती खबर घटित होने के बाद तो दुःखी अहसास होता है।


इसके अलावा कहें कि सिर्फ हम ही सही है

हमारे बारे में जानना आपका जरूरी नहीं है

शैतानों के शैतान स्वयं को कह दे तो भी क्या

बयानों को बयां कर पलटें तो किसी ब्युरो का क्या।

सवाल तो सीधे तौर पर सही पर जवाब उलटे देते

सही जवाब पता ना चले इसलिए ऐसा करते

तू तू, मैं मैं में उलझ जाते जीवन के सरल रास्ते

तब तकलीफ में उल्लेख पहेली का कर रह जाते ।

जिस्म तो किराए का मकान है

कभी भी इससे निकाला हो जाये

पता हो कि इसका किराया भी देना है

हम तो बस सोचे कि जो भी हो अच्छा हो जाये।।


कोई कुछ जो भी कहें तो बोल देते कि हमें पता है

ये क्या उनके लिए तो काला अक्षर भैंस बराबर भी

शर्मिंदा है

जो होता है सबको पता होता है पर बनते अनजान है

कोई कुछ भी टिप्पणी कर दे तो होते परेशान हैं ।

बहुत कुछ है समझ से परे समाज में जो है व्याप्त

सुधारना है कुछ तो करें बुराई को जड़ से ‌ध्वस्त

छोड़ कर अपनी सुख सुविधाएं सुविधानुसार

जानना है अब दुःख की दुविधाएं दूर करने के आयाम ।

जय जय भारत और जय जय भारतीय पौरुष

है पुकार मॉं भारती की कि अब और क्या शेष है

यह बुराइयाँ समय पर रुके तो होय सब अच्छा है

मॉं भारती के लाल जाग अभी भी अवसर शेष है ।।



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