फिजूल मोहब्ब्त
फिजूल मोहब्ब्त
कभी वो बोले थे क़बूल है,
क़बूल है, क़बूल है,
आज वो बोले प्यार फ़िज़ूल है,
फ़िज़ूल है,फ़िज़ूल है
क्या ऐसी होती है मोहब्ब्त,
बिना पैसे के क्या,
ये नहीं बनती है तिज़ारत
दिल की अमीरी पर,
पैसे की गरीबी भारी पड़ गई
और देव बन गया ये विजय
वो बोले तुम्हारी मोहब्ब्त तो
बस धूल हैं, धूल है, धूल है।