फ़ीनिक्स सी फ़िर जीवंत हो जाऊं
फ़ीनिक्स सी फ़िर जीवंत हो जाऊं
मोक्ष और मुक्ति तो लिखा है नियति में,
तो फ़िर क्यों न जीने का अरमां रखूं,
पुनर्जन्म की आस को मन में नित जगाऊं,
अग्नि परीक्षा जो सदियों से चली आ रही,
क्यों न मैं भी उनका हिस्सा बन जाऊं,
नारी का जन्म और सहनशीलता पाकर,
सृजनकर्ता का आभार कर पाऊं,
मां के रोपे संस्कारों का अभिमान रख पाऊं,
कर्तव्यों को निभाने का जज़्बा जीवंत रख पाऊं,
अधिकारों, दायित्वों की पोटली संभाल पाऊं,
बिखरते रिश्तों को संवारने का,
कुछ अधूरे सपनों को, फिर से उड़ाने का,
आहुति कर प्रसव पीड़ा का असहनीय दर्द,
हौसले का अपना संसार रख पाऊं,
अधूरी अभिलाषाएं जो,
समर्पण,बलिदान में पीछे छूट गयी,
पर राख होते मन के इक कोने में,
अब भी पुनर्जीवित होती है,
फ़ीनिक्स की भांति
उड़ने को तैयार है,
कभी सीता, कभी काली बन,
कभी अहिल्या, कभी द्रौपदी बन,
कभी सशक्त गाथा बन।