पहचान स्वयं से
पहचान स्वयं से
ऊंचाइयों का अंबार है
हाथ उठाकर छूना है ।
गुलशन में छाई बहार है
कांटो से फूलों को चुनना है ।।
अग्नि में तप कर कुंदन
नाम कनक का पाता है ।
खिलता हो पंक में चाहे
वह फूल कमल कहलाता है ।।
मझधार में जो मांझी बन जाए
वह स्वयं किनारा पाता है ।
तम में जो दीपक बन जाए
वह जग में उजियारा फैलाता है ।।
पहचानो अपनी हस्ती को
जानो तुम क्या कर सकते हो --
पथ से अपने शूल हटाकर
क्या दामन फूलों से भर सकते हो !
