फौजी का ख़त...
फौजी का ख़त...
माँ की कोख़ से जन्मा संतान,
आज बहुत बड़ा हो गया है,
जा रहा हूं मैं अपने मुल्क को ये जिंदगी सौंप कर,
सरहद पर जो यार है मेरे उनको भी अलविदा कर जा रहा हूं मैं,
अब मेरा हक भी तुम ले लेना और
भारत माता को मेरी याद जरूर दे देना,
मेरी माँ आज भी चौखट पर दिन-रात मेरी राह देख रही होगी,
पर उसे क्या पता उसका लाल आज उससे दूर हो रहा है,
पक्का मेरे जाने पर भी वो सलामती की दुआ कर रही होगी,
और एक दिये के सहारे मेरा इंतज़ार कर रही होगी,
वो आज फिर मुझे अपने हाथों से खाना खिलाना चाहती होगी,
पर मेरे खातिर वो ईश्वर से लड़ भी रही होगी,
ये ख़त मेरा उसके हाथों में सौंप देना,
और अपने अश्रुओं को न आने देना ऐसी कसम देना,
धीरे से उसका हाथ थामना और चलते-चलते
बस एक बार उसके आँसू पोंछ देना..
धीरे से उसका हाथ थामना और चलते-चलते
बस एक बार उसके आँसू पोंछ देना...