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Khanak upadhyay

Abstract

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Khanak upadhyay

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प्रेम - श्री कृष्ण और राधा का...

प्रेम - श्री कृष्ण और राधा का...

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कृष्ण की दीवानी, मीरा-सी प्रीत रानी,

प्रेम का ये संसार, कण-कण में है व्याप्त


बस गया मेरा पिया मुझ में, अब ना किसी का मोह है,

मैं बन गयी श्याम की राधा, अब सब कुछ ख़्वाब सा है


मैं बावली हूं, मदहोश भी, सूर्य-चंद्र ग्रहण की तेज़ भी,

उस ब्रह्मांड की खूबसूरती, झलकती पूरे वृंदावन में,


रात जगती रहे, तेरा दीदार रोज़ होता रहे,

मैं सो जाऊँ और सांसे तेरा नाम लेती रहे


जादू ऐसा बिछाया मुझपर कृष्ण तुने,

मैं तो तेरी दासी बन गयी, मन-कर्म से तुझ में ही बस गयी,


त्याग दिया सुख-दुख का बंधन, निकल पड़ी प्रेम की ओर,

कृष्ण की सवारी में, झुमने लगी आनंदित होकर,


पहचाना जब से तुझे मुरली मनोहर, राह तेरे नाम से ही चलने लगी,

बना दिया आलीशान महल, प्रेम की बहती रसधारा से,


तेरे बिन न अस्तित्व मेरा, मैं रचि हूँ कृष्ण तेरे ही लिए,

प्रेम से जुड़े है हम, प्रेम में सदा बस गए है हम...


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