फागुन में
फागुन में
जमाने के दिल में कोई अरमान मचलता है,
जब फागुन में वह शख्स घर से निकलता है,
होती हर गली रोशन हर जवानी बहक जाती हैं,
उसकी महक से दिल की हर गली महक जाती हैं।
होली की मस्ती में पागल करके वह दीवाना कर गई,
कितने जिस्मों से दिल निकाल उसमे खुद को भर गई,
इंतजार सदा रहता है उसका हर एक शख्स को यहां,
जब वह आती है और गालों पर रंग लगा कर जाती हैं।
यूं ही सबके मोहब्बत किसी पर फना नहीं होती यहां,
यह गांव शरीफों का है इश्क़ की तमन्ना नहीं होती यहां,
मगर फागुन में इसका भी होता मन जज्बाती है,
उसकी पायल की झंकार जब यहां तलक आती है।
हर किसी पर हर कोई रंग मला नहीं करते हैं,
मगर किसी के साथ हर कोई चला नहीं करते हैं,
मगर उसके साथ दुनिया ख्वाब में टहला करती हैं,
जब वो लड़की फागुन में घर से निकला करती हैं।