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nutan sharma

Abstract

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nutan sharma

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फागुन आयो री

फागुन आयो री

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जब रंग बरसते फागुन में।

मन वृंदावन हो जाता है।

देख छटा अबीर गुलालों की।

मन पावन हो जाता है।


जब बरसाने से राधा रानी।

भर के पिचकारी लाती हैं।

चहूं और रंग बरसते हैं।

मन कृष्णा कृष्णा गाता है।


जब रंग बरसते फागुन में।

मन वृंदावन हो जाता है।


जब उड़े गुलाल हवाओं में।

सबके चेहरे खिल जाते हैं।

चाहे दुश्मन हो कोई भी।

वह भी अपना बन जाता है।


जब रंग बरसते फागुन में।

मन वृंदावन हो जाता है।


जब टोली लेके नर नारी।

ढोल मृदंग बजाते आते हैं।

तब मस्त हवाएं फागुन में।

अंबर सतरंगी कर जाती हैं।।


जब रंग बरसते फागुन में।

मन वृंदावन हो जाता है।


जब कान्हा के आने की राह देख।

राधा रानी मुस्काती हैं।

इकट्ठा कर सब सखियों को।।

जब रंग घोलके लातीं है़ं।


जब रंग बरसते फागुन में।

मन वृंदावन हो जाता है।।


होली का उत्सव कुछ ऐसा है।

जहां हर कोई मन को भाता है।

रंग बिरंगे वस्त्रों में।।

हर्षो उल्लास समाता है।।


जब रंग बरसते फागुन में।

मन वृंदावन हो जाता है।


जब दूर सिपाही सरहद पे।

गोली से खुद को रंगता है।

तब देश अबीर उड़ाता है।।

हर कोई फागुन गाता है।


जब रंग बरसते फागुन में।

मन वृंदावन हो जाता है।


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