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VEENU AHUJA

Abstract

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VEENU AHUJA

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पेड़

पेड़

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सिर कटा धड़ शेष।

उदास निशब्द आँखें

बोलती हैं बहुत कुछ

कहती है एक लम्बी कहानी

वैभव, सुख। सम्पदा की।


पर आज हुयी इस तरह

उदास बेबस जीवन से निराश

कटा धड़ हुआ आज केवल स्मृति शेष।


देख यूं अपन ह्रास

वह हंसता मानो

हुआ मानव का ही ह्रास।

खिन्न है केवल इसलिए


कि यदि न लुटा होता उसका वैभव।

मिलता यह सुख भी उसी को

गुमसुम। मायूस हो सोचता पेड़

काश एक बार फिर वह हो पाता

हरा भरा वैभव सम्पदा से भरा पूरा।


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