पढा लिखा गुणा
पढा लिखा गुणा
पढा लिखा गुणा,बुजुर्गो से सुना था,
उस वक्त शिक्षा ने औहदो का नहीं ,नैतिकता का बल चुना था।
मन की भावनाओ से लेकर ,मन की वेदना चेहरे से पढी जाती थी,
यकीन जानो किताबी शिक्षा मे ,जिंदगी ढूंढी जाती थी।
रामायण,महाभारत,वेदो ,पुराणो मे सर्वांगीण मानव विकास छुपा था,
भगवदगीता मे व्यवस्थित व्यवहारिक ज्ञान छुपा था।
उस युग की शिक्षा मे,परोपकार,दयालुता,मानवता,के पाठ कंठस्थ याद करवाये जाते थे,
अहिल्या,गार्गी ,अनुसूया ,जैसी विदुषीयो ने समाज मे नारी को एक अलग मुकाम दिलाया था,
नारी सशक्तिकरण को बिना शोर के नारी के लिये सुगम बनाया था,
लेकिन आज के नजरिये से देखो तो वो सभ्यता के ज्ञानी अनपढ कहलाते थे।
ऐ मानव ,आंख उठाकर देख क्या विकास पाया है?
शिक्षा के असीमित विश्लेषण को अंको की उथल पुथल मे भूल आया है,
किताबो,महाकाव्यो की दुनिया अब किसको याद है,
तू आगे ,मै पीछे की होड़ ने शिक्षा का मर्म भुलाया है।
शिक्षा अंको के खेल मे समाने वाली विरासत नहीं, धरा से आकाश तक फैला साम्राज्य है,
ये धूरी है हमारी संस्कृति की, मानव अस्तित्व का गहन राज है।
चलो एक बार फिर नालंदा सरीखी शिक्षा का अलख जगाये,
अपनी अनमोल सभ्यता का,विश्व मे परचम लहराये,
पढकर जीवन का सार,लिखकर नैतिकता के अहसास,गुणा करके अनुभवो की गीतमाला बनाये,
पढा ,लिखा,गुणा इन शब्दो से ओत प्रोत शिक्षा के महात्म को अपनी नयी पीढी को सुनाये।
