"पौराणिक कथा माँ शबरी "
"पौराणिक कथा माँ शबरी "
यह कथा है माता शबरी की
हुआ जन्म भील समुदाय में उनका
श्रमणा और शबरी दो बड़े ही प्यारे उनके नाम
कोमल हृदय और राम भक्ति में रहती वो लीन ll
हुआ विवाह तय भील कुमार से उनका
चलन विवाह में ऐसा भी था
निर्दोष पशुओं को था मारा जाता
विचलित मन ये देख सका ना
मानो ऐसा पाप हुआ क्या ll
सोच अनेक निर्दोष पशुओं की बलि को
छोड़ चली घर विवाह से इक दिन पहले
पहुंची दडकारण्य वन में वो
था निवास उस वन में ऋषि मतंग का ll
मन में बहुत प्रबल इच्छा थी
सेवा करे मन से मुनिवर की
पर जाति से थी भील बिचारी
उपाय निकाला मन में तब इक ऐसा ll
जिस रस्ते से मुनिवर जाते
काँटों और कंकड़ से था वह चूर
नित्य सुबह उठकर वह करती
वो उस रास्ते को नियम से साफ
और चुपचाप बिछाती बालू उसपर
नियम नित्य ये बना लिया था अपना ll
देख कर एक दिन भक्ति उनकी
हो गए ऋषि भाव विभोर
और तब साथ ले चले संग कुटिया में वो अपनी
पाकर साथ मुनिवर का सबरी
मन से हो गई मुनिवर की दास ll
तन मन से करने लगी सेवा अपने मुनिवर की
जब अंत समय आया मुनिवर का
तो वह कह गए उनसे मुंह खोल
आएंगे इक दिन तुझसे मिलने
इस कुटिया में तेरे राम ll
कई बरसों तक की कठिन प्रतीक्षा
मिलने अपने प्यारे राम की खातिर
रोज सजाती आसन उनका
और रास्ता भी कर दी थी साफ़ ll
नित्य रोज तोड़ कर लाती
डलिया भर वो मीठे बेर
चख- चख भरती डलिया रोज
नयन बिछाएं कुटिया में अपनी
करती प्रतीक्षा आने की उनकी ll
सफल हुई तपस्या इक दिन उनकी
आ गए द्वार पर उनके राम
बड़े चाव से झूठे बेर मां शबरी ने दिए खिलाए
धन्य हो गया जीवन उनका
मिल गए उनको अपने राम ll
