पैमाना
पैमाना
उड़ती बेखौफ अपने सपनो के आसमां में उनमुक्त,
ख्वाहिशों को सीने में दफन नहीं करती ,तो अच्छा था।
झुकाकर अपनी आंखो को ,तूने दिये हौसले दूसरों को,
उठाकर अपनी आंखो को,खुद के हौंसले बुलंद करती तो अच्छा था।
अपनी आवाज दबाकर,तूने दिया बेमानी रिश्तों को,तवज्जो
आवाज उठाकर ,खुद से रिश्ता निभाती तो अच्छा था।
तेरी कोख के बिना ,अस्तित्व इस संसार का है शून्य
स्वयं के अस्तित्व की ताकत को,सामाजिक दायरों के परे उसे जान पाती तो अच्छा था।
मां,बेटी,बहन,पत्नी,बहू,के पैमानों से मापा जाता है तेरे सम्मान को,
इन पैमानों से परे ,एक आजाद स्त्री को मापने का पैमाना खुद के लिये बनाती तो अच्छा था।