Neeraj pal

Abstract

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पार लगाओ।

पार लगाओ।

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हे गोपाल, कृष्ण कन्हैया, अब तो राखो लाज हमारी।

 जीवन बाजी हार गया मैं, पड़ा हूँ शरण तुम्हारी।।


 समदर्शी है नाम तुम्हारा, सूझत नाहीं अब कोई हमारा।

 तुमने तो सबको है तारा, तुम बिन सूना सकल संसारा।।


 ऐसी प्रीत तुमने दिखलाई, प्रेम साधना तुमने सिखलाई।

 प्रेम मगन मीरा हुई दीवानी, गली-गली तुम्हरे ही गुण गाई।।


 प्रेम सुधा रस सबको पिलाया, सुदामा को भी गले लगाया।

 चरण पखार सब कुछ दे दीना, भक्त- भगवान का भेद मिटाया।।


 द्रोपदी की तुमने लाज बचाई, ग्राह से गजराज छुटाया।

 सूल सेज राणा का तुमने, मीरा हेतु कोमल बनाया।।


 तीनो लोक के तुम हो स्वामी, जाति-कुजाति सबको है तारा।

 तुम जानत सब अन्तरयामी, एकमात्र बस तुम ही हो सहारा।।


 प्रेम के वश गोपिन तुम कीन्हो, साग विदुर घर खाया।

 वृंदावन तुम बिन सूना, राधा संग रास रचाया।।


 जब जब भीड़ पड़ी भक्तों पर, अधर्म को तुमने ही मिटाया।

 अर्जुन का मोह मिटाकर, विराट दर्शन तुमने करवाया।।


 अवगुण मेरे तुम बिसराओ, माधुरी सूरत तुम दिखलाओ।

"नीरज" को ठौर नहीं कोई, अब तो मुझको पार लगाओ।।


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