"पापा और होली का त्यौहार "
"पापा और होली का त्यौहार "
फाल्गुन का महीना होली का त्यौहार
गुलाल में सराबोर था पूरा परिवार
नींद के आगोश में सोए थे हम थक कर
पता न चला रंग जीवन के कब उड़ गए
हमारे तो सभी रंग आपसे थे पापा
आप ही साथ छोड़ गए हमारा
उस रात काली का अंधेरा इतना घना था पापा
उस अंधेरे के काले रंग में रंग सभी कहीं खो गए
फाल्गुन का महीना होली का त्यौहार
गुलाल में सराबोर था पूरा परिवार
उस होली के रंग में रंग हमारे कुछ यूं धुल गए
मां के सिंदूर , पैरों के महावर का रंग तक ना रहा
टूटे कुछ यूँ बिन पापा आपके अपाहिज हम हो गए
बिखर गये हम उस क्षण समेटना भी मुश्किल हुआ था
पापा बिन साथ आपके हम कुछ यूं अधूरे से हो गए
तिफ्लगी में उंगली पकड़ने वाला वो हाथ जो ना रहा
फाल्गुन का महीना होली का त्यौहार
नहीं भाता है अब मन को हर बार
अबीर गुलाल की फुहार रंग भरी पिचकारी
कुछ यूँ तिफ्लगी में सिमट कर रह गयी
मानो जैसे जीवन में
कभी रंग थे ही नहीं
गुजों की मिठास रसगुल्लों का रस
भी कुछ यूँ तिफ्लगी में फीके पड़ गए
मानो जुबान ने कभी मिठास का रस चखा ही नहीं
फाल्गुन का महीना होली का त्यौहार
नहीं भाता है अब मन को हर बार
उस वर्ष २००८ के होलिका दहन में
हमारी खुशियों का भी दहन होना हुआ था
इस वर्ष होली के रंग अबीर गुलाल में
रंग हमारे जीवन के कुछ इस कदर खो गए
मां की पायल की खनक , मेहंदी का रंग तक उड गया
चूड़ियों की खनखन माथे की बिंदी तक ना रही
उस वर्ष की होली का वो दिन अविस्मरणीय भयावह सा रहा
फाल्गुन का महीना होली का त्यौहार
गुलाल में सराबोर था पूरा परिवार
नींद के आगोश में सोए थे हम थक कर
पता न चला रंग जीवन के कब उड़ गए
हमारे तो सभी रंग आपसे थे पापा
आप ही साथ छोड़ गए हमारा
उस रात काली का अंधेरा इतना घना था पापा
उस अंधेरे के काले रंग में रंग सभी कहीं खो गए ।।🙏