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Akansha Dixit

Abstract Inspirational Others

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Akansha Dixit

Abstract Inspirational Others

मेरे सपने

मेरे सपने

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 रंग बिरंगे सपने मेरे ना जाने क्यों फीके पड़ जाते हैं 

 मेहनत लाख लगा लूं 

ना जाने क्यों सपने मेरे हाथ से फिसल जाते हैं

क्या करूं क्या ना करूं समझ कुछ आए ना 

यूं ही साल दर साल बीते जाते हैं 

रंग बिरंगे सपने मेरे 

ना जाने क्यों फीके पड़ जाते हैं


अब तो लगता है 

गोविंद साथ नहीं तुम शायद 

इसलिए फीके पड़ जाते हैं सपने मेरे

 मम्मी पापा भाई बहनों की उम्मीद 

भरी आंखें दिल में मेरे चुभते जाते हैं

कहां कमी है समझ कुछ आए ना

 आखिर क्यों

 रंग बिरंगे सपने फीके मेरे पड़ जाते हैं


अब और क्या लिखूं दिल मेरा रोता है

 कलम मेरी रुक जाती है

 फिर नयन मेरे पन्नों की तरफ चले जाते हैं

 रंग बिरंगे सपने जो अपने करने हैं 



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