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Akansha Dixit

Abstract Classics Others

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Akansha Dixit

Abstract Classics Others

मेरी माँ की लिखावट हूं मैं

मेरी माँ की लिखावट हूं मैं

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एक एक सांस का हिसाब रख

यह जीवन मेरी मां ने मुझे सोंपा है

कैसे उस मां के लिए लिखूं 

जिसकी लिखावट मैं खुद हूं


क्या रचूं मां के लिए ,

उसने मुझे रचा है

अपने आप में दुनिया समेटे एक अक्षर मांँ है

जीवन का पहला गुरुकुल , मेरी माँ है

मुझे डांटते डांटते खुद रो जाये , मेरी मांँ है

अश्क अपने पल्लू से पोंछ मुझे हसाए , मेरी मां है


क्या लिखूं मां के लिए

जिसकी लिखावट में हूं

मांँ का दूसरा रूप , मेरी मांँ है

जीवन के दूसरे पड़ाव का साथ , मेरी मांँ है

जिसने खुदा का नायाब हीरा दिया , मेरी मांँ है

 दो बहनों का साथ मित्र रूप दिया , मेरी माँ है 

एक की रचना , दूसरे की लिखावट में मै हूँ

 

 क्या रचूं उस माँ के लिए

 जो मेरी खुद रचनाकार है

उंगली पकड़ पहला कदम चलाये , मेरी मांँ है

मुझे खिलाकर बचा खुद खाए , मेरी मांँ है

मांगू एक रोटी ले आये दो , मेरी मांँ है

बस चले तो, 

कलम से सफलता मेरी लिख दे , मेरी मां है


क्या माँ को कविता में पिरोउं

जो खुद अपने में समेटे ब्रह्मांड है 

जीवन की पहली दोस्त खुदा का अमूल्य तोहफा दीदी मेरी मां है

लड़ते भिङते जीवन में साथ निभाये दीदी मेरी मांँ है 

मां बन जीवन का सार सिखाया भाभी ,मेरी माँ है

खुदा का फरिश्ता बन हर वक्त में साथ दे भाभी , मेरी मांँ है

 

मैं क्या शब्दों को माला पिरोउं

मैं खुद एक माला का मोती हूंँ

खुदा का धन्यवाद गोविंद का आशीर्वाद

मांँ को झोली में मेरी फिर से डाल दिया।

हे गोविंद ! आपके दोनों रूप को मेरी लग जाए

साथ मुझे संपूर्ण जीवन मिले


मैं कैसे लिखूं मां के लिए

मेरी कलम मेरा साथ यह कह छोड़ देती है

जिनकी वजह से वजूद मेरा है 

कैसे उनके लिए मैं चलूं।


🌹🙏 मेरी माँ , ब्रह्मांड मेरा 


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