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Akansha Dixit

Abstract

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Akansha Dixit

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रात का अफसाना

रात का अफसाना

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रात का अफसाना कुछ यूं लेकर चले हैं 

अपने ही ख्वाबों को बुनते बुनते 

इन्हीं में कहीं खो गए हैं 

जब छायी धुंध की चादर सर्द रातों पर

तब भी रात का अफसाना लेकर चले हैं हम

कहीं हो धुआँ या कहीं फिजा

या डाला हो सर्द हवाओं ने अपना डेरा

फिर भी रात का अफसाना

कुछ पन्नों के साथ लेकर चलें हैं हम 

सुना है रातें जितनी कोरी होंगी 

सफलता उतनी ही हसीन होगी 

तभी तो रात का अफसाना लेकर चलते हैं हम 

बहुत कुछ है कहने को ,

कुछ लिखने को पर अभी यहीं विराम देते हैं।



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