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Akansha Dixit

Abstract

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Akansha Dixit

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इतिहास के पलटते पन्नों में कुछ

इतिहास के पलटते पन्नों में कुछ

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जब भी टटोलूं मैं इतिहास को 

हर बार कुछ नया पाती हूं 

पलटते पन्नों में इतिहास के कुछ

इस तरह खो जाती हूं 

जैसे मैं मैं नहीं 

उस समय की कोई घटना 

और मैं एक मात्र मूक दर्शक 

कहीं कौटिल्य जी की कुटिलता 

तो कहीं सांभा जी के किस्से 

कहीं होती क्रांति की तैयारियां 

उन्हीं में घूमती कमल और रोटियाँ

बजता बिगुल क्रांति का

फांसी के तख्त पर पांडे जी के चढ़ने से 

करता ह्यूगरोस वार झांसी रानी पर पीछे से

बैसाखी के मेले में डायर के हुकुम से

बरसती गोलिया बाग जलियां वाले में

गर्व से निडर खड़े सिंह साहब फांसी के तख्त पर 

इंकलाब जिंदाबाद नारों के संग 

होता जिंदगी का मौत से मिलन 

देख उस क्षण को काँपती मेरी रूह है 

पलटते पन्ने छलकते अश्कों संग

बनी फिर एक बार मूक दर्शक

कहीं आजादी पाने की लालसा ले जाती

जर्मनी की ओर नेताजी को

कहीं होती नमक की यात्रा कर से आजादी पाने को

लाख संघर्ष और बलिदानों के बाद

खुशी के संग गम भी लाता दिन आजादी का 

होते भारत के टुकड़े दो चुभता

दिल में आज भी है

कहीं रचते रचनाकार विश्व के

सबसे नायाब संविधान को

मेरे भारत के संविधान को

जब भी टटोलूं मैं इतिहास को 

हर बार कुछ नया पाती हूं

पलटते पन्नों में इतिहास के

कुछ इस तरह खो जाती हूं

जैसे मैं मैं नहीं 

उस समय की कोई घटना

और मैं एक मात्र मूक दर्शक ।


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