पानी
पानी
पानी का न रंग होता है
ना ही कोई गंध,
उसका आकार भी
हम तय करते हैं
कभी एक जगह ठहरता,
तो कभी बहता जाता है
सबकी तृष्णा समाप्त करता,
आखिर समंदर में मिल जाता है
जहाँ उसकी मिठास,
खारेपन में बदल जाती है
फिर भी उसका मूल्य,
कतई कम नहीं होता
एक कार्य को समाप्त कर,
नए काम को अंजाम देने,
बहता ही चला जाता है...
