पाखी का अपनापन
पाखी का अपनापन
न चाहते हुए भी
पाखी का मेरे
घर में
बसेरा लेना ...
बच्चे को जन्म देना
उसकी सेवा- सुश्रुषा में
मेरा लगे रहना
पाखी का बराबर आना- जाना।
घर में कोई बीमार हो,
तो परिवार की भांति
दरवाजे पर पहरा देना ,
उसके अस्पताल जाने पर
विचलित हो जाना
ये प्यार
अपनापन नहीं तो
और क्या है?
पशु पक्षी मूक होते हैं
पर वे मनुष्य की
भावनाओं से परिचित
होते हैं।
वे अपनी विभिन्न
प्रक्रियाओं से
मनुष्यों को खुश करना
चाहते हैं।
पाखी भी हर दिन
आकर हम दोनों को
अपने बच्चे की
तरह खुशी दे जाती है।
बच्ची का फुदकना
हमें आह्लादित
कर जाता है,
हमारे अकेलेपन का सहारा।
पशु - पक्षी की यही
खासियत होती है
वे इन्सान को अपना
परिवार समझते हैं।
परिवार की तरह
हिल मिल कर
दुःख - सुख में
शामिल हो जाते हैं।
इन अनबोलते प्राणी का
हमें सम्मान करना चाहिए।
हमारी सृष्टि इन्हीं से है
और हम इनसे हैं ....