उलझन और मैं
उलझन और मैं
उलझनें तो बहुत है, पर मुस्कुरा लिया करता हूँ
थोड़ा उलझ कर, इसे सुलझा लिया करता हूँ
क्योंकि जीना इसी का नाम है...
मुसलसल सी आरजू है, जिंदगी में कुछ करने की
इसी जुस्तजू में चुनौतियों को स्वीकार कर लिया करता हूँ
क्योंकि जीना इसी का नाम है....
थकता नहीं मैं, डरता नहीं मैं, अडिग रहता हूँ पथ में अपने
हिमालय सा धैर्य लिए, बुनता जाता हूँ सतरंगी सपने
क्योंकि जीना इसी का नाम है....
चलता हूँ, गिरता हूँ, भागता हूँ, मगर रुकता नहीं
समय के साथ गतिमान हूँ मैं, और यही है सही
क्योंकि जीना इसी का नाम है...।