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ARVIND KUMAR SINGH

Romance

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ARVIND KUMAR SINGH

Romance

पागल कर दिया काहे

पागल कर दिया काहे

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मुख मोड़ा और चल दिये 

मैं भाग रहा तुम्हारे पीछे

सीने से निकला जाए जो 

उस दिल को मुट्ठी में भींचे


थोड़ा रुककर महजबीन

इस दिल की सुनते जाना

मेरा होना क्यों नहीं गवारा

जब तुम को सब कुछ माना


मेरा दिल जो रहा न मेरा

इसे पहलू में अपने ले लो

मर्ज़ी तुम्हारी मारो ठोकर

या साथ में इसके खेलो


ग़लती इसमे दिखे न कोई

दिल तुमने ही किया दीवाना

सुन लो जानिब इस दिल को

अब साथ में लिए तुम जाना


तरस रहा मिलने को तुमसे

हरदम तुम को ही पाना चाहे

मेरा तो अब ये रहा ही नहीं

तुमने पागल कर दिया काहे


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