ओझल
ओझल
वो पल भी कितना अजीब होता है ना ... !
जब आप उस इंसान से मिलने की ख्वाहिश रखते हो
जो तुम्हारे लिए खास है
जिसके लिए तुम्हारे दिल में धड़कती प्यार की बरसात है
शायद उसके दिल में भी तुम्हारे लिए प्यार की मीठी आस है
पर जब तुम उससे मिलो, तो कुछ बोल ही ना पाओ
तुम्हारे पास बातें तो करने केलिए हो, हजार
हर जनम में, सिर्फ उसका ही करना चाहो तुम इंतजार
सिर्फ उसीसे करना चाहो, अपने प्यार का इजहार
पर जब तुम उससे आमना-सामना करो ...
तब आप उस इन्सान में, उसकी इंसानियत में
उसकी बातों में, उसकी आदतों में
उसकी अदाओं में, उसकी चाहतों में
उसीकेे सेवरों में, उसीकी रातों में
पूरी तरीके से गुलम
ील जाओ
सिर्फ उसीमें तुम डूब जाओ
सिर्फ उसीमें तुम तैर जाओ
भले ही कहलाते हो तुम जंगल के शेर
लेकिन उसकी सिर्फ एक तिरछी नजर, तुम्हें कर देती हो ढेर
उसकी सिर्फ एक कातिलाना नजर, तुम्हें बना देती हो शेर से ढेर
ना बन पाओ तुम, उसके सामने सवा सेर
चाहे कितनो को किया हो, घायल तुमने बन के शेर
जब बातें लबों पर तो आए
लेकिन होठों से वो वापिस लौट जाए
बिन शब्दों के ही बातें बहोत हो जाए
जब आंखे चार से दो हो जाए
और पता नहीं, कब ... ?
लेकिन तुम्हारी वो मुलाकात, आखिरी बन जाए
जब सड़कों से, वो तुम्हारी वाकिफ हो जाए
और देखते ही देखते, आंखो से वो ओझल हो जाए।