STORYMIRROR

minni mishra

Abstract

4  

minni mishra

Abstract

ओ..माँ

ओ..माँ

1 min
274

ओ माँ !

लेखनी की स्याह में

शब्द पिरो रही हूँ।

अधजली कागज पर,

भावना उकेर रही हूँ।


कोख को निचोड़कर

तूने कचरे में

मुझे फेंक दिया !

क्या कसूर था मेरा,

जो मौत में धकेल दिया ?


कैसी जननी हो ?

किस-किस से डर रही हो ?

अपनों से या

अपनी उस परम्परा से ?


जो स्वर्ग नरक का

द्वार दिखाती !

बेटा-बेटी में

भेद सिखाती i


कभी कंस भी

बेटी की हत्या से थर्राया था

हाँ, रावण भी

सीता-हरण से घबराया था ।


माँ तुझे भी

हत्या का पाप लगेगा !

मेरे खोने का कुछ तो

पश्चाताप रहेगा ?


विश्वास करो माँ,

मैं सती,

सावित्री और सीता बनूँगी

गार्गी, मैत्रयी और

इंदिरा दिखूँगी।


बस, एक बार,

एक बार मुझे आने दे

माँ अपनी बाहों में

मुझे सोने दे।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract