नज़म
नज़म
ना पीने का शौक़ है ना पिलाने का शौक़ है
मुझे साकी तेरी नज़रो में डूब जाने का शौक़ है ।।
जब तोड़ता है कोई दिल मेरा बेदर्दी से
टूटे हुए टूकड़ो को खुद ही उठाने का शौक़ है ।।
कटती नहीं जब शबे-इन्तज़ार हमसे तो
तेरी यादों से दिल बहलाने का शौक़ है ।।
लेकर हाथों मे जाम जाग कर रात भर
कैश-ओ-कहन की बातें सुनाने का शौक़ है ।।
दूर रहना अब शायद बर्दाश्त ना हो हमसे
इसलिए तुझे अपनी साँसो में बसाने का शौक़ है ।।
क़ायिल तो ना थे हम जहाँ में किसी के मगर
रूठे-रूठे सनम को तो मनाने का शौक़ है ।।
थोड़ी सी लबों की मय जो वो पिला दे प्रेम
तो हमें भी पी के बहक जाने का शौक़ है ।।

