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Vivek Madhukar

Abstract Inspirational Others

4.8  

Vivek Madhukar

Abstract Inspirational Others

नया साल और मानवता

नया साल और मानवता

2 mins
420


सरसराती गाड़ियाँ, चमचमाती साड़ियाँ !

हसीन समां,

    मदमस्त हवा

रंगीन शाम,

    चलते जाम पे जाम

इधर पॉप,

    उधर मुजरा

यहाँ हार,

    वहाँ गजरा

वाह ! वाह ! वाह ! वाह !

वाह ! वाह ! वाह ! वाह !

झनकते पायल,

    खनकती चूड़ियाँ

मदमाता यौवन,

    खिलखिलाती युवतियाँ

चमकते आनन, दमकते कानन

महकते बदन, चहकते नयन


तभी

  कवि के भीतर कहीं कोई रोया

    थोड़ा चीखा और चिल्लाया

एक कसक उठी उसके मन में

    लगा अटक रही एक फाँस हलक में


कवि को आश्चर्य हुआ

  भला ऐसी हसीं रात

    में कौन कर रहा रुदन

  इस उल्लसित वातावरण

    में भी रीता किसका मन


कवि ने मन टटोला

    तो पाया

  यह सभ्यता का क्रन्दन था

इस दृश्य से कवि के

    हृदय का

  बन्द हो रहा स्पन्दन था


कोने में किसी को दुबका पाया

    तो कवि पास आया

हिम्मत करके पूछा –

    आप कौन हैं ?

इस रंगीन महफ़िल में

    भला क्यूँ मौन हैं ?


तभी किसी ने कवि

    को जोर का धक्का दिया

और उसे उठाकर

    पटक ज़मीन पर दिया

दर्द से कराहते हुए

    कवि ने कोने में देखा

तो पाया वह तो

    थी

    काँपती इंसानियत ,

     सिसकती मानवता


उसकी आँखें बन्द हो रही थीं

    दम घुट रहा था

और कोई कलेजे पे चढ़ा उसका

    गला दबा रहा था

चार मुस्टंडों के बीच वह

    इस तरह थी सहमी, खड़ी

जैसे भूखे शेरों के बीच

    फंसी हो निरीह बकरी


पहला खद्दर और गाँधी टोपी – धारी

दूजा मुँह में चुरूट दबाए

    नशे का व्यापारी

तीजा रामनामी चादर ओढ़े

    एक धर्माधिकारी

चौथा खाकी वर्दी चढ़ाए

    कानून का पुजारी


ये सारे धर्म और सभ्यता के ठेकेदार

    हैं देश की अस्मत के व्यापारी


ये धीरे – धीरे चाट रहे

    दीमक की भांति

       मानवता की नींव को

और खोखला कर रहे

    दिन – प्रतिदिन

       समाज के हर जीव को


ये सौदा कर रहे

    भारत की वर्तमान पीढ़ी का

और दिखला रहे रास्ता उन्हें

    मौत की सीढ़ी का


गुंडे घूम रहे बेधड़क

    मचा चारों ओर हाहाकार है

झूठ का है बोलबाला

    तथा फरेबी की जयकार है


जाने कब होगा सवेरा,

    इस कालरात्रि का अन्त

पता चल नहीं रहा कौन

    है शैतान, कौन सन्त !


आइये शपथ लें

    इस

    नूतन वर्ष

     के

      शुभ अवसर पर

कि

हम लुप्त हो रही

    इंसानियत को जिलाएँगे

और

करेंगे बुराई का खात्मा

    चलेंगे सदा सत्यपथ पर


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