नवरंग छटा
नवरंग छटा
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रंग भरे बादल बिखेरें अपनी नवरंग छटा
लाल गुलाबी अबीर से रंग गई घनघोर घटा
धीमी दस्तक देती लो आ गई होली की बहार
सर्द सिहरना छोड़ अंगड़ाई आंगन बरसी फुहार
गीत गुलाल प्रीत प्रसाद सब घुल मिल गए आज
फाल्गुन आया देखो रंग गए सबके फूले गोरे गाल,
मिसरी की मिठास सी मुंह में घुल जाए वो
अधर धरे यमन राग में तान बुने मधुरम वो
ढोल मृदंग की धुन पे पग पग ऐसे थिरके वो
जैसे राधा नाचे संग बनवारी गूंजे गोकुल ज्यों,
वही राग है वही फाग है जब मिले रंग से रंग
सागर नदी दरिया छोटी मिले जाए इक संग
ये उत्सव है हर्ष उल्लास का पुलकित हर मन
एक रंग है प्रीत का जिसमें सृष्टि संपूर्ण मलंग,
तू भी आजा होकर मगन छोड़ जग के काम
कुछ क्षण आनंदित होकर अंदर नव श्वास भर
तीज त्योहार सबके साझे हैं प्रफुल्ल होकर जी
नवरंग बहेगा जीवन में तू आनंद रस अमृत पी,
रंग भरे बादल बिखेरें अपनी नवरंग छटा
लाल गुलाबी अबीर से रंग गई घनघोर घटा।