नशा नियत नहीँ
नशा नियत नहीँ
रुतबे का गुरूर नशा
रुतबा दौलत का हो या
शोहरत ताकत का
इंसानों की दुनिया में
नफ़रत फासले की
जमी के जज्बात।।
खुदा की कायनात में
ऊंच नीच बुरूजुआ
बादशाह गुलामी के
जज्बात।।
अमीरी की अय्याशी नशा
इंसानों का खून पीता है
इंसान शराब शाकी पैमाने
मयखाने हो जाते बेकार।।
कभी जमींदार की मार
ताकत दौलत का चाबुक
इंसान से इंसान ही खाता
मार ग़रीबी की मजबूरी दमन
दर्द की मजलूम की आह।।
दर्द इंसान की किस्मत
कहूं या खुद खुदा बन बैठा
इंसान हद के गुजरते गुरूर
नशे का नाज़।।
ईश्वरी गर नशा गुरूर है
बीर मजबूरी में घुट घुट
कर जीने का नाम।
घुटने टेक देता इंसान
मकसद का मिलता
नहीं जब कोई राह
खुद के वसूल ईमान
का सौदा करने को
सब कुछ जज़्ब कर लेता
इंसान।।
ईश्वरी जमींदार के गुरूर
किरदार बीर शोषित
समाज का भविष्य वर्तमान।।
संगत सोहबत में बीर पर
जमींदारी के गुरूर धौंस
का नशा हो जाता सवार।।
जब टूटता नशा खुद को
बीर पाता गंवार।।
वीर शेर की खाल ओढ़
शेर बनने के स्वांग में
अमीरी अय्याशी के छद्म
नशे का लम्हे भर के लिए
शिकार। ।
