नमन तुझे हे वीर
नमन तुझे हे वीर


सरहदों से लौटकर ये वीर सो रहा है
कैसे लिपटकर इसके तिरंगा रो रहा है
ज़िन्दगी का दांव खेला देश के सम्मान को
आज जीत वो गया हार अपनी जान को
गोद सूनी हो गयी माँ का आँचल रिक्त है
मस्तक पिता का है तना आंख किन्तु सिक्त है
चूड़ियों की खनक खो गयी पायल गमगीन है
माँग का सिंदूर भी जैसे याद में तल्लीन है
नमन तुझे हे वीर बटोही तूने जो उपकार किया
नहीं झुकेगा कभी तिरंगा स्वप्न ये साकार किया