नज़र
नज़र
आ बैठ मेरी नज़रों में तूं, नज़रों से नज़र चुराना था।
तेरी सूरत पढ़-पढ़ के, एक ग़ज़ल बनाना था।
मासूम से होठों की,ये सुर्ख जो लाली है...।
बस इनको छू करके,एक तस्वीर बनाना था।
पलकों पे जो तेरी ,काज़ल की लकीरें हैं।
इनके इशारों पर ,कुछ शब्द चुराना था।
सुना है नज़रों से, काज़ल चुराते है...।
हमको उन नज़रों से,कुछ लफ़्ज़ चुराना था।

