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Renuka Chugh Middha

Romance

4.0  

Renuka Chugh Middha

Romance

नज़र

नज़र

1 min
460


असर तेरी नज़र का कुछ ऐसा हुआ कि 

तन्हाईयो के सिलसिले शुरू हुऐ


फिर आप से तुम तुम से तू हुऐ,  

बेचैनियो ने पकड़ा दामन, खुद से भी तो अजनबी हुए ! 


शरारत नज़रों की हरारत बढ़ा गई दिल की,  

हम नज़रें चुराने लगे कुछ यूँ शर्माते हुऐ ! 


मिली जब नज़र से जब नज़रें उनकी तो,

कि चादँ भी छुप गया बादलों में बहकते हुऐ ! 


कजरारे नैनो के दीप जब रोशन हुऐ तो,

 दियों के अंधेरों के तले भी, रोशन हुऐ जगमगाते हुऐ !


परेशां हो जाती है कभी कभी तेरे चेहरे की कशमाकश भी,  

मेरे आने की आहट से जगमगा उठते है तेरी नज़रों के जुगनू !


इक उलझी सी लट तेरे लबों को छू रूकसारों पर बिखर जाती है,  

गेसुओं की चिलमन से झांकती है कजरारी

तिरछी नज़र, इक ग़ज़ल फिर अँगड़ाई लेती है ! 


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