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Nalanda Wankhede

Abstract

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Nalanda Wankhede

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निशां

निशां

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सैलाब तो समन्दर मे हुआ करता 

आज यह सडकों पर दिखता क्योंं 


लहरो की मंजिल साहिल हुआ करती 

इन जत्थो ने गांव गांव पुकारा क्यों 


कितना भी समझाओ समझते नहीं 

कुछ लोग होते हैं ढ़ाक के तीन पात क्यों


देने की गर बात आयी तो दिल खोलकर देते 

 गिन गिन कर वफादारी निभाते क्यों


इतनी ही कशिश होती प्यार मे 

तो आँखो के किनारे दो मिलते क्यों


तीमारदारी उनकी तो करते हैं सभी

फिर लफ्जों के पत्थर चलाते क्यों


शहर तुम्हारा इतना ही कदरदाँ होता

तो पांव लहू के निशां छोड़ते क्यों


मिलती गर अपने हिस्से की तारिख सबको

बस्ती बस्ती में 'नालंदा' यह फसाद होते क्यों !



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